Add To collaction

लेखनी कहानी -27-Apr-2022 सागर की गोद में

भाग 1 


डॉक्टर तरू, एक जानी मानी स्त्री रोग विशेषज्ञ । उसने एम. सी. एच किया था और वह एक सुपर स्पेशलिस्ट थी । बहुत थोड़े से समय में ही उसने "इनफर्टिलिटी" विषय में महारथ हासिल कर ली थी । मेडिकल के पेशे में बहुत थोड़े से समय में उसने बहुत सारा नाम कमा लिया था । ऐसा हर किसी के साथ नहीं होता है । मगर तरू की बात ही कुछ अलग थी । इसलिए उसके पास हरदम भीड़ लगी रहती थी । 
दिल्ली के नामी गिरामी अस्पताल "फर्टिलिटी हॉस्पिटल" में काम करती थी वह । यह अस्पताल इस क्षेत्र में भारत का सबसे प्रमुख अस्पताल था । मोटी तनख्वाह और भारी भरकम सुविधाएं मिलती थी उसे । अपने पेशे में वह इतनी डूबी हुई थी कि शादी करने के लिए भी वक्त नहीं था उसके पास । करने की तो बात ही अलग, शादी के बारे में सोचने के लिए भी समय नहीं था उसके पास । और फिर शादी की जरूरत भी क्या है ? खुले विचारों की आज की आजाद नारी थी वह । उसके लिए कुछ भी "वर्जित" नहीं था । जो मन चाहे, वह करो । तन को जो संतुष्ट कर सके, उसके साथ रहो । यही सोच थी उसकी । और जब सब कुछ बिना शादी के ही मिल रहा हो तो फिर शादी की क्या जरूरत ? इसलिए ही वह स्वच्छंद रहना चाहती थी । 
ऐसी सोच केवल तरू की ही नहीं थी । बहुत सी ऐसी लड़कियां थीं जो इस सोच से इत्तेफाक रखती थीं । ऐसी लड़कियों में एक अनजाना सा डर बना रहता है कि पता नहीं "वह" कैसा होगा ? कहीं उस पर "वह" अपनी "हुकूमत" तो नहीं थोप देगा ? और फिर "जवानी के दिनों" में जिसकी आवश्यकता है वह तो डॉक्टर आनंद जैसे लोगों से मिल ही जाता था, इसलिए शादी के झंझट में कौन पड़े ? इस सोच के कारण ही ऐसी लड़कियों से उसकी दोस्ती हो गई थी । 

इस प्रकार की सोच रखने वाले लगभग 100 लड़के लड़कियों का एक ग्रुप बन गया जिसका नाम था "फोरेवर बैचलर" । डॉक्टर आनंद और तरू जैसे बहुत से लड़के लड़कियां इस ग्रुप के सदस्य बन गए थे । सब लोग सिंगल थे और एक दूसरे की शारीरक आवश्यकताओं की पूर्ति करते रहते थे । इश्क नाम की बीमारी किसी ने नहीं पाली । केवल और केवल अपनी "जरुरत" पूरी करनी थी उन्हें , इसके अलावा और कुछ नहीं । इसके लिए एक दूसरे को मैसेज भेजे जाते और "रात गुजारने" की रिक्वेस्ट भेज दी जाती । जिसे जो पसंद , उसकी रिक्वेस्ट स्वीकार कर "मौज" मनाई जाती थी ।  वीकेंड पर ग्रुप की पार्टी किसी बड़े होटल में होती थी । शराब और शबाब की मॉकटेल में रात कैसे गुजर जाती थी पता ही नहीं चलता था । कौन किसका पार्टनर बनेगा यह भी लॉटरी से ही निर्धारित होता था । 

यूं तो बहुत सारे "मर्द" डॉक्टर तरू को पसंद थे मगर डॉक्टर आनंद की बात ही कुछ और थी । उसके साथ कुछ अलग ही आनंद आता था उसे । जिस रात वह आनंद के साथ होती थी, वह रात उसके लिए अविस्मरणीय बन जाती थी ।

डॉक्टर आनंद का व्यक्तित्व ही कुछ ऐसा था कि उस पर ग्रुप की हर महिला सदस्य "फिदा" थी । उसकी आंखों में विशेष आकर्षण था जो बरबस उन्हें अपनी ओर आकर्षित कर लेता था । आनंद को शायद कभी किसी लड़की को कुछ भी कहने की जरुरत नहीं पड़ी थी बल्कि हर लड़की उसके साथ हमबिस्तर होने के लिए लालायित रहती थी । गोपियों के बीच कन्हैया था आनंद । प्रत्येक दिन डॉक्टर आनंद के पास बहुत सारी लड़कियों की फरमाइश आ जाती थी कि आज कौन कौन उसके साथ रात बिताना चाहतीं हैं । उनमें से अपनी पसंद के अनुसार वह किसी एक को बुला लेता था और फिर उसके बंगले में "हुस्न और इश्क" की "महफिल" जमती थी । सांसों के तूफान में दोनों बह जाते थे । कई कई बार सागर की गोद में समा जाते थे दोनों । 

दूसरे दिन दोनों प्राणी अपने अपने काम पर पूरी मुस्तैदी के साथ लग जाते थे । इस ग्रुप में डॉक्टर, प्रोफेसर, बड़े बड़े नौकरशाह, पुलिस अधिकारी, जज और बड़ी कंपनियों के सी ई ओ शामिल थे । सब के मध्य बड़ा मधुर व्यवहार था । किसी से कोई ईर्ष्या नहीं कोई विशेष लगाव नहीं ।  उन सबकी दुनिया एकदम अलग ही थी । 

इस ग्रुप की कुछ कठिन शर्तें भी थीं जिनका पालन सबको करना होता था । अपने पार्टनर के बारे में कभी किसी से बात नहीं करनी थी । रात का अनुभव कैसा रहा, यह किसी के साथ शेयर नहीं करना था । जब कभी भी किसी नये सदस्य का आगमन उस ग्रुप में होता था तब एक शानदार "वैलकम पार्टी" उस रात आयोजित की जाती थी । सब लोग गीत संगीत , दारू , डांस में डूब जाते थे । नये सदस्य को उस रात के लिए किसी एक सदस्य को "चुनना" होता था जिसके साथ उसे रात गुजारनी होती थी । बाकी लोग लॉटरी से पार्टनर चुनते थे । इस तरह जिंदगी जीने का एक अलग ही आनंद था इस ग्रुप के द्वारा । 
डॉक्टर तरू की जिंदगी बहुत व्यस्त थी । ओ पी डी में जिस दिन वह बैठती थी, मरीजों की लाइन लग जाती थी । सुबह दस बजे से लेकर रात के आठ बजे तक वह मरीजों को देखती थी । तब तक वह थककर निढ़ाल हो जाती थी । फिर आधा घंटे छोटे बच्चों के वार्ड में जाकर उनके साथ बिताती थी तब कहीं जाकर उसमें स्फूर्ति और ऊर्जा आ पाती थी । उन बच्चों के साथ खेलकर मूड फ्रेश हो जाता था उसका ।  उसके बाद ही वह घर जा पाती थी । 

एक दिन दोपहर के बारह बजे थे और डॉक्टर तरू ओ पी डी में मरीजों को देख रही थी कि इतने में "पिंग" की आवाज आई । बरबस उसका ध्यान मोबाइल की ओर चला गया । डॉक्टर आनंद की कॉल थी । डॉक्टर आनंद का इस समय फोन ? "कोई खास बात ही होगी तभी फोन किया होगा आनंद सर ने । और खास बात क्या होगी, यह अनुमान वह अच्छे से लगा सकती थी । डॉक्टर आनंद का ऐसे समय में फोन तब ही आता था जब उन्हें डॉक्टर तरू की "सख्त" जरूरत होती थी" । डॉक्टर आनंद भी बड़े अजीब आदमी हैं । वह मन ही मन सोचती । तरू के चेहरे पर एक प्यारी सी रहस्यमयी मुस्कान बिखर गई ।  उसने सामने बैठे मरीज को जल्दी से निपटाया और सहायक कर्मचारी को कहा कि जब तक वह ना कहे कोई भी व्यक्ति अंदर चैंबर में नहीं आना चाहिए । 

उसने डॉक्टर आनंद को कॉल लगाया "सर, एक पेशेंट में बिजी थी इसलिए फोन अटैंड नहीं कर पाई, सॉरी । आज तो बहुत दिनों में याद किया आपने, सर । आज कैसे याद आ गई हमारी ? लगता है कि कई दिनों से 'भूखे' हैं , जनाब" ? तरू ने उलाहना देते हुए कहा । 

"अरे , तुम भी कोई भूलने की चीज हो क्या तरू ? भगवान ने तुम्हें हम जैसे लोगों की विशेष फरमाइश पर ही तो बनाया है । ये काले काले घने बाल, ये तीखे तीखे नयन, ये लाल सुर्ख होंठ, और ये सांचे में ढ़ला बदन ? इतनी खूबसूरत बॉडी ऐसे ही नहीं बनाई तुम्हारी, प्रभु ने । इसके लिए हम जैसे लोगों ने बहुत मिन्नतें की थीं भगवान से । तब जाकर तुम्हारी उत्पत्ति हुई है हम जैसे लोगों को आंनद से लबरेज करने के लिए । तुम तो हमेशा ही हमारे जेहन में रहती हो तरू । लेकिन तुम तो जानती ही हो कि "वी आई पी" लोगों का इस्तेमाल किसी खास अवसर पर ही किया जाना चाहिए । और तुमसे बड़ा वी आई पी कौन है मेरे लिए ?  मैं तुम्हें ऐंवैंयी नहीं बुला सकता हूं ना । उसके लिए तो मेरे पास लड़कियां भरीं पड़ी हैं । तुम तो खास मौके पर ही याद आती हो । आज वो खास मौका आया है इसलिए तुम्हें याद किया है । अच्छा, एक बात तो बताओ । क्या कर रही हो अभी" ? 

"पेशेंट देख रही हूं सर । दोपहर के बारह बजे और क्या करूंगी भला" ? तरू ने खिलखिलाते हुए कहा ।
"छोड़ो इन बेचारे पेशेंटों को । इन्हें तो कोई छोटी मोटी  बीमारी ही होगी ।  आज तो हम आपके पेशेंट बनना चाहते हैं । बहुत बड़ी बीमारी से गुजर रहे हैं आज । जल्दी से आ जाओ और आकर तुरंत हमारा इलाज करो । मैं यहां ओ टी में तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं" । और आनंद ने फोन काट दिया ।

डॉक्टर आनंद की भाषा सदैव आदेशात्मक होती थी । क्योंकि उन्हें पता था कि तरू उन पर जान छिड़कती है । तरू ही क्या हर लड़की उन पर जान छिड़कती है और आनंद की "कॉल" का हमेशा इंतजार करती रहती हैं सब ।
भला तरू ऐसे अवसर को कैसे छोड़ सकती थी ।

तरू ने सहायक कर्मचारी को बुलवाकर पूछा कि कितने मरीज बैठे हैं, बाहर ।  सहायक कर्मचारी ने बताया कि करीब तीस मरीज बैठे हैं । इतने मरीजों को छोड़कर कैसे जाये ? ये उसकी समझ में नहीं आ रहा था । लेकिन आनंद को मना करना भी उसके लिए असंभव था । आनंद के लिए तो वह मरीज क्या दुनिया भी छोड़ सकती है । एक हलकी सी संभावना टटोलने के लिए उसने डॉक्टर आनंद से कहा "सॉरी सर , मरीजों की भीड़ बहुत ज्यादा है । निपटाने में तीन चार घंटे तो लगेंगे ही" । 

उधर से डॉक्टर आनंद के जोर जोर से हंसने की आवाज आने लगी "यहां तो एक मिनट को भी चैन नहीं है तरू और तुम तीन चार घंटे की बात करती हो । अब सब्र का बांध टूट रहा है इसलिए तुम जल्दी से आ जाओ । बहुत तनाव में हूं अभी । तुम जानती ही हो  कि मैं जब भी तनाव में होता हूं ओ टी में, तब तुम्हारी जरूरत पड़ती है । तुम्हारे बदन की गंगा में नहाने के बाद ही इस तनाव से मुक्ति मिलती है मुझे । इसलिए, गोली मारो उन मरीजों को और अभी तुरंत आ जाओ । मैं तुम्हारे बदन के सागर की गोद में बैठना चाहता हूं तरू । अभी और इसी वक्त । मैं ओ. टी. में ही इंतजार कर रहा हूं तुम्हारा " । 

डॉक्टर तरू आनंद को अच्छी तरह से जानती थी । आनंद न्यूरो सर्जन है और वह भी कोई छोटा मोटा डॉक्टर नहीं । सुपर स्पेशलिस्ट । दुनिया भर में उसके नाम का डंका बज रहा है । भारत में सबसे अधिक प्रसिद्ध और काबिल डॉक्टर है वह न्यूरोसर्जरी का । न्यूरो के ऑपरेशन सबसे कठिन होते हैं । डॉक्टर आनंद को ऐसे जटिल ऑपरेशन करने में महारथ हासिल थी । मगर उसकी एक कमजोरी थी । जब कोई ऑपरेशन बहुत अधिक जटिल होता था तब वह तनाव में आ जाता था । उसके हाथ पांव कांपने लगते थे । उसकी एक हलकी सी गलती किसी की जान ले सकती थी या किसी को जिंदगी भर के लिए अपाहिज बना सकती थी । मगर आज तक कभी ऐसा नहीं हुआ । क्योंकि ऐसे तनाव को दूर करने के लिए तरू जो थी उसके पास । वह तरू के सागर रूपी बदन में डूबकर अपना सारा तनाव तरू में "छोड़" देता था । और फिर एकदम फ्रेश माइंड से ऑपरेशन करता और वह ऑपरेशन सफल भी होता था । आज तक एक भी केस बिगड़ा नहीं था उसके हाथ से । जब सारे डॉक्टर हाथ खड़ा कर देते थे तब वह केस आनंद के पास आता था । आनंद भी ऐसे केस पर अपनी फीस 10 लाख रुपये लेता था । उसका नाम ही जिंदगी की गारंटी बन चुका था । जब जब वह ऐसा कोई जटिल ऑपरेशन करता, तब तब वह तनाव में आ जाता था । यह तनाव उसे पागल बना देता था । इस तनाव को दूर करने का तरीका केवल डॉक्टर तरू के पास था । वह उसे अपने आगोश में ऐसे समेट लेती थी कि डॉक्टर आनंद सब कुछ भूलकर उसमें समा जाता था । आनंद को लगता था कि जैसे वह सागर की गोदी में बैठा है । केवल डॉक्टर तरू ही थी जो अपना बदन परोसकर डॉक्टर आनंद को "रिलैक्स" कर सकती थी । अन्य किसी महिला में वो ताकत नहीं थी जो डॉक्टर तरू में थी । इसलिए ऐसे समय पर आनंद केवल तरू को ही याद करता था । 


शेष अगले अंक में 

हरिशंकर गोयल 
22.4.22 

   17
6 Comments

Punam verma

30-Apr-2022 09:22 AM

Nice

Reply

Hari Shanker Goyal "Hari"

30-Apr-2022 04:29 PM

💐💐🙏🙏

Reply

Sandhya Prakash

29-Apr-2022 08:50 PM

बहुत खूब

Reply

Hari Shanker Goyal "Hari"

30-Apr-2022 04:29 PM

💐💐🙏🙏

Reply

Gunjan Kamal

28-Apr-2022 08:57 AM

बेहतरीन भाग

Reply

Hari Shanker Goyal "Hari"

30-Apr-2022 04:28 PM

💐💐🙏🙏

Reply